घर
– Simpreet Singh/ सिमप्रीत सिंघ

घर न fsi न tdr होता है
घर तो एक सपनो का छोटा सा
संसार होता है
घर एक जरूरत, एक पुकार होता है
घर ना 70 % consent होता है
घर ना ही DP का reservation होता है
घर ना ही एक कारोबार होता है
घर एक तड़प होता हे
घर एक अपनापन होता है
घर इस अजनबी संसार में
अपनों का सरोकार होता हे
घर एक संघर्ष कि पुकार होता हे
घर कभी एक दीवार होता है
घर कभी फूटपाथ होता है
घर कभी तो किसी प्लेटफार्म का बेन्च भी होता है
कभी प्लास्टिक की शीट तो कभी
साड़ी का पलु भी होता है
तुम क्या जानो घर क्या होता है
तुम
जिसने सिर्फ घरो को sq ft का विस्तार देखा
जिसने सिर्फ घरो की निचे ज़मीन को देखा
जिसने सिर्फ घरों को investment और
उस पर rate of return को देखा
तुम क्या जानो घर क्या होता है
तुम जिसने
घरो का कभी बनते नहीं देखा
घरों को कभी टूटते नहीं देखा
घरो को बुलडोज़र निचे कुचलते नहीं देखा
न देखा न समझा न जाना
न महसूस किया
घरो की दिवारो के बिच पलपते
सपनो को
क्यूंकि
घर न fsi न tdr होता है
घर तो एक सपनो का छोटा सा
संसार होता है।